AI vs. Lawyers

एग्रीमेंट | Agreement in Hindi | Faq Agreements

Table of Contents

 एग्रीमेंट कितने दिन तक वैलिड होता है?

( Agreement validity Period) एग्रीमेंट कितने दिन तक वैलिड होता है?

एग्रीमेंट कितने दिनों तक वैलिड होता है इस प्रश्न का निश्चित उत्तर जानने के लिए हमें कानून के विभिन्न आयामों का अध्ययन करना पड़ेगा | सर्वप्रथम संविदा अधिनियम को देखने से ज्ञात होता है कि भारतीय संविदा अधिनियम में एग्रीमेंट की और संविदा की परिभाषा दी गई है,किंतु एग्रीमेंट की वैधता अवधि के बारे में भारतीय संविदा अधिनियम में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है ,दस्तावेज एवं दावों के परिसीमा काल  के निर्धारण के लिए बने भारतीय परिसीमा अधिनियम 1963 में एग्रीमेंट की वैधता अवधि के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया है ऐसे में प्रश्न यह पैदा होता है कि एग्रीमेंट की वैलिडिटी या वैधता अवधि कब तक मानी जाए ? संविदा अधिनियम में यह स्पष्ट प्रावधान है कि संविदा करने के लिए सक्षम दो पक्षकार एग्रीमेंट की प्रक्रिया से गुजरते हुए संविदा की अवस्था तक पहुंचते हैं | इसीलिए कहा गया है कि  सभी संविदा एग्रीमेंट होती है किंतु सभी एग्रीमेंट संविदाए  नहीं होते हैं|  हिंदी में जिसके लिए संविदा शब्द का प्रयोग किया गया है उसे ही अंग्रेजी भाषा में कॉन्ट्रैक्ट कहते हैं और हिंदी में जिसके लिए करार  या समझौता शब्द का प्रयोग किया गया है  उसे ही अंग्रेजी भाषा में  एग्रीमेंट कहा गया है |  संविदा करने के लिए सक्षम दो पक्षकार जो स्वस्थ चित हो एवं बिना किसी दबाव के हो बिना नशे पते की अवस्था में सोच समझकर जिन शर्तों पर पलना  हेतु सहमति दी जाती है वही एग्रीमेंट की शर्तें कहलाती है | एग्रीमेंट के निष्पादन के समय एग्रीमेंट के पक्षकार मिलकर एग्रीमेंट की समय अवधि का निर्धारण भी कर लेते हैं इससे यह स्पष्ट होता है कि एग्रीमेंट सामान्य तौर पर एग्रीमेंट में वर्णित समय सीमा के लिए ही वैलिड होते हैं | अगर सरल भाषा में कहा जाए तो एग्रीमेंट की समय अवधि एग्रीमेंट में ही लिखी हुई होती है,  इसी प्रकार कानून के विरुद्ध किया गया कोई भी एग्रीमेंट शून्य होता है | एग्रीमेंट कानून से ही शक्ति प्राप्त करता है |  जिस कार्य को या कार्य के लोप को कानून ने वर्जित कर रखा है उसके बारे में किया गया कोई भी एग्रीमेंट प्रारंभ से ही शून्य होता है | बैंकिंग एग्रीमेंट का विस्तार समय  भुगतान अवधि तक होता है जब तक लोन चुका ना दिया गया हो |  वित्तीय संस्थानों को संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से एग्रीमेंट की समय अवधि का विस्तार एग्रीमेंट में निहित उद्देश्य और दायित्व के विस्तार तक माना जाता है | यदि कोई एग्रीमेंट किसी ऐसे दावे के बारे में है इसके बारे में भारतीय परिसीमा अधिनियम 1963 के अंतर्गत परिसीमाकाल  पूर्व निर्धारित है तो परिसीमा काल  की समाप्ति के पश्चात ऐसा एग्रीमेंट मान्य नहीं समझा जाएगा यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि किसी एग्रीमेंट का मान्य होना और वैध  होना अलग-अलग कानूनी बिंदु है | परिसीमा काल के गुजरने के पश्चात एक वैलिड दस्तावेज भी मान्य नहीं रहता है | एग्रीमेंट की वैलिडिटी के बारे में संक्षिप्त उत्तर नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि एग्रीमेंट किस प्रकार का है और उसमें क्या शर्ते वर्णित है |  इस आधार पर उसकी वैलिडिटी अवधि का निर्धारण होता है | किराएदार का अनरजिस्टर्ड एग्रीमेंट या रेंट एग्रीमेंट सामान्यतः 11 महीने के लिए वैलिड रहता है यदि किराएदारी अधिक अवधि के लिए है तो किराएदारी एग्रीमेंट को या रेंट एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड कराना कानूनी रूप से अनिवार्य है |

एग्रीमेंट कितने प्रकार के होते हैं?

( Types of agreement )एग्रीमेंट कितने प्रकार के होते हैं?

एग्रीमेंट के प्रकारों के बारे में कानून में कोई विशिष्ट निर्धारण नहीं किया गया है किंतु यह स्पष्ट है कि ऐसे किसी भी विषय पर एग्रीमेंट हो सकता है जिसके ऊपर कानून किसी प्रकार से कोई रोक नहीं लगाता  है , इसका विस्तृत विवेचन किया जाए तो यह विषय बहुत बड़ा हो जाता है |  प्रत्येक ऐसे कार्य के लिए एग्रीमेंट हो सकता है जिसके ऊपर अधिनियमित कानून  में कोई भी निर्दिष्ट रोक नहीं लगाई है या न्यायालय के निर्णय के माध्यम से कोई रोक नहीं लगाई गई है | यहां एक और गौर  करने वाली बात है कि न्यायालय के निर्णय भी कानून के समकक्ष  माने जाते हैं क्योंकि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय संबंधित राज्य या संपूर्ण देश में कानून की भांति लागू होते हैं यही संवैधानिक प्रावधान है | सामान्यतः पार्टनरशिप या साझेदारी एग्रीमेंट, नॉन  डिस्क्लोजर एग्रीमेंट, क्षतिपूर्ति एग्रीमेंट,एजेंसी एग्रीमेंट,डीलरशिप एग्रीमेंट, फ्रेंचाइजी एग्रीमेंट,डेवलपर एग्रीमेंट,सेल एग्रीमेंट,परचेज एग्रीमेंट या बाय एग्रीमेंट,सप्लाई एग्रीमेंट, लीज़ एग्रीमेंट, वेंडर एग्रीमेंट, हायर परचेज एग्रीमेंट,कॉपीराइट असाइनमेंट  एग्रीमेंट, एग्रीमेंट फॉर सेलिंग प्रोडक्ट, एग्रीमेंट फॉर सप्लाई  ऑफ़ सर्विसेज,कस्टमाइज्ड एग्रीमेंट फॉर स्पेशल कॉज ,अपॉइंटमेंट एग्रीमेंट,डाइवोर्स एग्रीमेंट.शेयर होल्डर्स एग्रीमेंट,शेयर परचेज एग्रीमेंट,वेबसाइट डेवलपर एग्रीमेंट,एप डेवलपर एग्रीमेंट,मार्केटिंग एग्रीमेंट,सर्वे एग्रीमेंट,इत्यादि कई प्रकार के एग्रीमेंट आधुनिक आवश्यकताओं और समय के हिसाब से कानूनी रूप से संभव है | प्रत्येक एग्रीमेंट की शर्तें विषय वस्तु के अनुसार और उद्देश्य के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है |

जमीन का एग्रीमेंट कैंसिल कैसे होता है?

( Cancellation of land agreement)जमीन का एग्रीमेंट कैंसिल कैसे होता है?

जमीन का एग्रीमेंट एक प्रकार का विशेष कानूनी दस्तावेज होता है जिसमें दो या दो से अधिक पक्ष किसी आवासीय कृषि या वाणिज्यिक भूमि को खरीदने या बेचने पर सहमत होते हैं |जिन शर्तों पर खरीद और बेचने की प्रक्रिया की जानी है उन शर्तों और राशि का विवरण जमीन के एग्रीमेंट में होता है | यदि किसी कृषि आवासीय या वाणिज्यिक भूमि को भाड़े पर या किराए पर दिया जाना है तो ऐसे में जमीन का रेंट एग्रीमेंट भी होता है | उन शर्तों का स्पष्ट विवरण एग्रीमेंट में अंकित होना चाहिए जिन पर परिसर या सम्पति किराये  दी जा रही है  | भूमि का प्रकार माप एवं विवरण भी जमीन के एग्रीमेंट में स्पष्ट रूप से लिखा होता है | जमीन का एग्रीमेंट करते समय विवादों से बचने के लिए और कन्फ्यूजन( संशय) की स्थिति से बाहर आने के लिए यदि किसी कारणवश एग्रीमेंट कैंसिल करना हो तो उन वजहों और उसकी पूरी प्रक्रिया का विवरण एग्रीमेंट में निश्चित रूप से होना चाहिए वरना आप उलझन में पड़ सकते हैं | जमीन का एग्रीमेंट करते समय ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि किसी कारणवश एग्रीमेंट को कैंसिल करना पड़े तो वह किस तरह से होगा और उनमें किन शर्तों को शामिल किया  जाना आवश्यक है  इस बारे में अपने कानूनी सलाहकार या वकील साहब से अवश्य परामर्श लेना चाहिए | यदि एग्रीमेंट की किन्हीं शर्तों की पालना नहीं हो रही है तो सिविल न्यायालय की शरण भी ली जा सकती है | ऐसे मामले में परिसीमा काल या  लिमिटेशन पीरियड भी एक महत्वपूर्ण विषय होता है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए | जमीन का एग्रीमेंट कैंसिल करने के लिए कानूनी आधार होने अत्यंत आवश्यक है और जिस व्यक्ति के साथ एग्रीमेंट कैंसिल किया जा रहा है उस  व्यक्ति को निर्धारित समय अवधि के भीतर विधिक सूचना पत्र के माध्यम से सूचित करना आवश्यक है उन कारणों  का स्पष्ट विवरण दिया गया हो जिनको निरस्त करने   का  या कैंसिल करने का आधार बनाया गया है | यदि एग्रीमेंट कैंसिल करने का नोटिस भेजने के पश्चात दोनों पक्षकारों में सहमति नहीं है तो मामले का निर्धारण सक्षम न्यायालय द्धारा  ही किया जा सकता है | इस संबंध में अपने अधिवक्ता से परामर्श करने के पश्चात आप उचित लीगल सॉल्यूशन(क़ानूनी समाधान)  पर पहुंच सकते हैं | 

एग्रीमेंट और कॉन्ट्रैक्ट में क्या अंतर है ?

(difference between  agreement and contract )

 

कानून में यह स्थापित धारणा है कि “हर एक एग्रीमेंट कांट्रेक्ट नहीं होता किंतु हर कांट्रैक्ट एग्रीमेंट जरूर होता है ” ऑल द एग्रीमेंट्स आर  नॉट कॉन्ट्रैक्ट बट एवरी कॉन्ट्रैक्ट इज एन  एग्रीमेंट” यदि इसकी ज्यादा विवेचना की जाए तो एग्रीमेंट और कॉन्ट्रैक्ट में अंतर स्वतः स्पष्ट हो जाता है | हर एग्रीमेंट कानून द्वारा लागू कराए जाने योग्य नहीं होता क्योंकि उसमें संविदा के लिए आवश्यक शर्तें मौजूद हो या ना हो यह जरूरी नहीं है |  एक संविदा के लिए जिन शर्तों का होना आवश्यक है उन शर्तों का विवरण भारतीय संविदा अधिनियम की प्रारंभिक धाराओं में दिया गया है जैसे की  संविदा कपट रहित होनी चाहिए |  दोनों पक्षकारों की स्वतंत्रत सहमति होनी चाहिए , संविदा करने वाले पक्षकार संविदा की प्रकृति को समझते हो अर्थात वह किसी नशे में नहीं होने चाहिए | संविदा करने वाले पक्षकार  स्वस्थ चित होने चाहिए अर्थात वह पागल और दिवालिया नहीं होने चाहिए | संविदा का कोई प्रतिफल अवश्य होना चाहिए बिना प्रतिफल की संविदा शून्य होती है | संविदा करने वाले पक्षकार और भारतीय वयस्कता  अधिनियम के मुताबिक वयस्कता की आयु पूर्ण किए हुए होने चाहिए अर्थात नाबालिक नहीं होने चाहिए | संविदा में कोई कपट प्रपीड़न  या छल  नहीं होना चाहिए |

एग्रीमेंट में क्या लिखा जाता है ?

(the content of any legal agreement)एग्रीमेंट में क्या लिखा जाता है ?

एग्रीमेंट किस चीज के लिए किया जा रहा है और किसके द्वारा किया जा रहा है ? एग्रीमेंट करने के क्या उद्देश्य है?  एग्रीमेंट करने के पश्चात किस पक्षकार की क्या जिम्मेदारी होगी ? एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को क्या दिया जाएगा अर्तार्थ प्रतिफल क्या होगा ? एग्रीमेंट की पालना कैसे होगी ? उसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी ? इन सभी बातों का विवरण शर्तों सहित क्रमबद्ध तरीके से कानूनी भाषा में एग्रीमेंट में लिखा जाता है ,एग्रीमेंट इसलिए लिखा जाता है ताकि किसी पक्षकार के द्वारा वादे से बदलने पर दूसरे पक्षकार के पास कानूनी कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त सबूत और आधार रहे |  साथ ही कौन पक्ष  सही है या सच बोल रहा है यह भी  लिखित एग्रीमेंट की शर्तों को पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है | धोखाधड़ी से बचने और विवादों का समाधान करने के लिए एग्रीमेंट लिखा जाता है | एग्रीमेंट में कानूनी रूप से आवश्यक तत्व होने चाहिए |  एग्रीमेंट किसी वकील या अधिवक्ता के माध्यम से ही लिखवाना चाहिए | आजकल बहुत सारे व्यक्ति खर्चे से बचने के लिए अधिवक्ताओं की सलाह नहीं लेते हैं और अपनी मर्जी से रेडीमेड एग्रीमेंट इंटरनेट से  डाउनलोड करके और फॉर्मेट पर साइन कर देते हैं जिसकी वजह से वह कानूनी रूप से कई सारी उलझनों  का सामना समय आने पर करते हैं और समय तथा धन की बर्बादी भी करते है ,अनावश्यक मुकदमे बाजी में फसते हैं और जीवन का महत्वपूर्ण समय मुकदमा लड़ने में ही बिता देते हैं इसीलिए बिना कानूनी जानकारी के एग्रीमेंट लिखने की प्रवृत्ति बहुत ही खतरनाक साबित होती है और व्यक्ति को न्यायालय से भी कोई राहत नहीं मिल पाती क्योंकि एग्रीमेंट में उचित कानूनी प्रावधान नहीं होते हैं जो उसे राहत दिला सके |  एग्रीमेंट में बाद में एक शब्द भी नहीं जोड़ा जा सकता इसलिए एग्रीमेंट करते समय उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए और अधिवक्ता की सहायता से विधिपूर्ण परिस्थितियों में एग्रीमेंट का लेखन किया जाना चाहिए | जिन शर्तों की आवश्यकता आपको महसूस हो रही है ,दोनों पक्षकारों द्वारा चर्चा के पश्चात सहमति के उपरांत ही  अधिवक्ता के माध्यम से उचित कानूनी ड्राफ्टिंग तैयार करके एग्रीमेंट लिखा जाना चाहिए और एग्रीमेंट को उचित स्टांप पर लेखन किया जाना चाहिए |  एग्रीमेंट तैयार होने के पश्चात एग्रीमेंट को नोटरी द्वारा नोटराइज्ड करवा लेना चाहिए या  पंजीयन और मुद्रांक विभाग के सरकारी विभाग में एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड करवा लेना चाहिए ताकि वह वक्त जरूरत काम आ सके |

संपत्ति खरीदने का सौदा करने के बाद मालिक रजिस्ट्री नहीं करे तब क्या है खरीददार के अधिकार ? ( Rights of Land buyer )

Rights of Land buyer

यदि संपत्ति खरीदने का सौदा करने के पश्चात भी संपत्ति का मालिक एग्रीमेंट की शर्तों के मुताबिक रजिस्ट्री करने के लिए तैयार नहीं है तो उसे विधिक सूचना पत्र के माध्यम से सूचित करके संविदा की विनिर्दिष्ट पालना  का दावा संबंधित न्यायालय में लाया जा सकता है | न्यायालय मामले की परिस्थितियों को देखते हुए संविदा की विनिर्दिष्ट पालन करने का आदेश दे सकता है या खरीदार द्वारा भुगतान की गई राशि पुनः उसे लौटा  सकता है |  यदि एग्रीमेंट उचित तरीके से निष्पादित नहीं किया गया है और एग्रीमेंट में कुछ कानूनी कमियां है तो संविदा की  निर्दिष्ट पलना  के दावे में कानूनी राहत के आसार कम होते हैं, हालांकि यह मामले की प्रकृति और दस्तावेजों को देखने के पश्चात ही बताया जा सकता है | न्यायालय मामले में जो भी निर्णय करें दोनों पक्षकारों के ऊपर लागू होता है |

एग्रीमेंट कैसे तैयार करें?

( How to prepare or draft an agreement)

 

एक अच्छा एग्रीमेंट तैयार करते समय उन सभी शर्तों का उल्लेख एग्रीमेंट में किया जाना चाहिए जिनकी बाद में जरूरत पड़ सकती है | किंतु ध्यान रहे की कोई भी शर्त कानून के खिलाफ नहीं होनी चाहिए |    देश में प्रचलित कानून का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए, यदि एग्रीमेंट की कोई शर्त कानून के खिलाफ है तो वह एग्रीमेंट किसी काम का नहीं है इसलिए एग्रीमेंट की ड्राफ्टिंग करते समय अधिवक्ता, वकील या कानूनी सलाहकार की सलाह अवश्य लें ताकि एग्रीमेंट में होने वाली कानूनी गलतियों से बचा जा सके | एग्रीमेंट में उन सभी शर्तों को लिखित रूप से उल्लेखित किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है जिन पर दोनों पक्षकार सहमत हैं | एग्रीमेंट उचित स्टांप पर निष्पादित किया जाना चाहिए | एग्रीमेंट लिखित में होना चाहिए | कानूनी प्रावधान अनुसार आवश्यकता होने पर एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड करवाना चाहिए या नोटरी करवाना चाहिए | एग्रीमेंट में क्षतिपूर्ति का क्लॉज़ भी अवश्य रखा जाना चाहिए जिसमें यह उल्लेख होना चाहिए कि किसी पक्षकार की गलती होने पर कितनी क्षतिपूर्ति दूसरे पक्षकार को अदा की जाएगी | एग्रीमेंट की भाषा संदिग्ध नहीं होनी चाहिए, स्पष्ट भाषा में एग्रीमेंट लिखा जाना चाहिए |  एग्रीमेंट लिखते समय कानूनी प्रावधानों का पूरी तरह से ध्यान रखना चाहिए | एग्रीमेंट तैयार करने से पूर्व एग्रीमेंट से संबंधित महत्वपूर्ण कानूनी बिंदुओं पर अपने वकील साहब, अधिवक्ता से परामर्श कर लेना चाहिए |

रजिस्टर्ड एग्रीमेंट का मतलब क्या होता है?

( Meaning of Registered agreement)

 

रजिस्टर्ड एग्रीमेंट को लोक दस्तावेज माना जाता है |  भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 में रजिस्टर्ड दस्तावेज को लोक दस्तावेज (पब्लिक डॉक्यूमेंट ) माना गया है | रजिस्टर्ड एग्रीमेंट वह होता है जिसे कानून के प्रावधान के अनुसार सबरजिस्टार के पास पंजीकृत कराया जाता है | रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1908 की धारा17 में उन दस्तावेजों का उल्लेख किया गया है जिनका रजिस्ट्रीकरण कानूनन  अनिवार्य है | 100 रु से अधिक कीमत के किसी भी अचल संपत्ति के दस्तावेज को कानूनन रजिस्ट्रीकृत किया जाना जरूरी है, इसी अधिनियम की धारा 18 में उन दस्तावेजों का विवरण दिया गया है जिनका रजिस्ट्रीकरण किया जाना वैकल्पिक है |  रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1908 की धारा 22 (क ) में उन दस्तावेजों का वर्णन किया गया है जिनका रजिस्ट्रीकरण लोक नीति के विरुद्ध घोषित किया गया है | जो दस्तावेज कानून के अनुसारपंजीकृत किए जाते हैं उन्हें रजिस्टर्ड दस्तावेज कहा जाता है यदि कोई कानूनी दस्तावेज कोई एग्रीमेंट है और रजिस्टर्ड किया गया  है तो उसे रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कहा जाता है |

 

 प्रॉपर्टी में धोखा हो तो क्या करे?

(  legal action for Cheating in property matters)

प्रॉपर्टी में धोखा हो तो क्या करे?

यदि आपके साथ प्रॉपर्टी के लेनदेन में कोई धोखा हुआ है और आप निर्दोष हैं तो आपको कानून के अनुसार पुलिस को शिकायत करनी चाहिए | इस संबंध में उचित कानूनी जानकारी एवं परामर्श के लिए आपको अपने अधिवक्ता से संपर्क करना चाहिए, उसके पश्चात सही और वास्तविक तथ्यों का विवरण देते हुए पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है | भारतीय दंड संहिता की धारा 406 और 420 में मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है |  सबूत और दस्तावेज जो भी हो  पुलिस को उपलब्ध कराने होंगे, पुलिस अनुसंधान के पश्चात मुकदमा दर्ज करेगी | झूठा मुकदमा दर्ज करवाना कानून अपराध है और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है | झूठा मुकदमा दर्ज करवाने पर आपके स्वयं के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है | यह एक सामान्य कानूनी सिद्धांत है कि न्यायालय के समक्ष किसी व्यक्ति को साफ हाथों से आना चाहिए अर्थात कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए | प्रॉपर्टी में धोखे से बचने के लिए प्रॉपर्टी का लेन-देन कानून के अनुसार एग्रीमेंट करने के पश्चात ही करें |  अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के साथ लेनदेन न करें |यदि संपूर्ण सावधानी बरतने के पश्चात भी धोखा हो जाता है तो दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है |  पुलिस द्वारा मुकदमा दर्ज करने से आनाकानी करने पर संबंधित मामले के सबूत न्यायालय में पेश करके न्यायालय के आदेश से भी मुकदमा दर्ज करवायाजा सकता है |

जमीन की फर्जी रजिस्ट्री करने पर कितने दिन की सजा हो सकती हैं ?

( Punishment for  forged registration of property )जमीन की फर्जी रजिस्ट्री करने पर कितने दिन की सजा हो सकती

जमीन की फर्जी रजिस्ट्री करवाना कानून द्वारा घोषित अपराध है और इसके लिए भारतीय दंड संहिता में कठोर कानूनी प्रावधान दिए गए हैं | यह अपराध भारतीय दंड संहिता की संपत्ति से संबंधित अपराधों की श्रेणी में आने वाला अपराध है | जमीन की फर्जी रजिस्ट्री करने पर कितने दिन की सजा हो सकती है यह मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है साथ ही  पुलिस अनुसंधान में क्या धाराएं लगाई गई है उसके हिसाब से अलग-अलग धारा में सजा का प्रावधान भी अलग-अलग होता है | इस संबंध में उचित कानूनी जानकारी के लिए विशेषज्ञ अधिवक्ता एडवोकेट से संपर्क करना चाहिए |

क्या भूमि रजिस्ट्री रद्द की जा सकती है?

( Process of cancellation for Land Registry)

 

कपट, धोखाधड़ी और कानूनी  प्रावधानों का उल्लंघन करके बेईमानी पूर्वक   की गई भूमि की रजिस्ट्री सक्षम सिविल न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई के पश्चात निरस्त या रद्द की जा सकती है | मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए साक्ष्य का निश्चय करने के पश्चात न्यायालय अपने निर्णय के माध्यम से रजिस्ट्री निरस्त करने का अधिकार रखता है और किसी भी पीड़ित पक्षकार के पक्ष में ऐसा फैसला दिया जा सकता है यदि मामले के तथ्यों, परिस्थितियों और कानून की अपेक्षा हो | इस संबंध में उचित कानूनी जानकारी के लिए आप योग्य अनुभवी अधिवक्ता से संपर्क कर सकते हैं |

एग्रीमेंट कैसे तोड़े ? ( Revocation of agreements)एग्रीमेंट कैसे तोड़े ?

जिस प्रकार से एग्रीमेंट करते समय कानूनी प्रावधानों का पालन करना पड़ता है उसी  तरह से एग्रीमेंट को तोड़ते समय भी कानूनी प्रावधानों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, किसी एक पक्षकार की इच्छा से एग्रीमेंट को नहीं तोड़ा जा सकता है |  एग्रीमेंट तभी तोड़ा जा सकता है जबकि एग्रीमेंट की किन्हीं शर्तों में ऐसा प्रावधान हो और ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई हो कि उन शर्तों को लागू किया जा सके | यदि एग्रीमेंट की शर्तों में निरस्त करने का कोई प्रावधान नहीं है तो न्यायालय के माध्यम से स्थापित कानून के अनुसार तथ्यों को साबित करने पर एग्रीमेंट न्यायालय द्धारा  निरस्त किया जा सकता है | लोक नीति के विरुद्ध होने पर या कानून के विरुद्ध होने पर भी एग्रीमेंट निरस्त किया जा सकता है | कानून के विपरीत होने पर एग्रीमेंट प्रारंभ से ही शून्य होता है इस संबंध में उचित कानूनी जानकारी के लिए एग्रीमेंट और सिविल लॉ की जानकारी रखने वाले अधिवक्ता से संपर्क किया जा सकता है और कानूनी परामर्श के पश्चात न्यायालय के माध्यम से राहत प्राप्त की जा सकती है | एग्रीमेंट तोड़ने से पूर्व एग्रीमेंट का अध्ययन करके विधिक सूचना पत्र के माध्यम से एग्रीमेंट तोड़ने के आधार बताए जाने चाहिए | एग्रीमेंट तोड़ना एक सामान्य बोलचाल की भाषा है , कानून की भाषा में इसे एग्रीमेंट निरस्त करना या रद्द करना कहा जाता है |

जमीन का एग्रीमेंट करने से क्या होता है?

(Legal Consquencess of land agreements)

इस प्रश्न का उत्तर इस बात पर निर्भर है की जमीन का एग्रीमेंट किस उद्देश्य से किया जा रहा है यदि जमीन किराए देने के लिए एग्रीमेंट किया जा रहा है तो किराएदार और भूमि मालिक का संबंध एग्रीमेंट के माध्यम से स्थापित होता है और यह रेंट एग्रीमेंट कहलाता है | अनरजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट 11 माह के लिए ही वैलिड होता है इससे अधिक अवधि के लिए इसे रजिस्टर्ड कराया जाना कानूनी रूप से आवश्यक है | यदि जमीन खरीदने या बेचने से संबंधित एग्रीमेंट किया जा रहा है तो इस एग्रीमेंट के माध्यम से खरीददार और विक्रेता का संबंध स्थापित होता है और एग्रीमेंट के माध्यम से कुछ दायित्व और कर्तव्य उत्पन्न होते हैं तथा उसके कुछ कानूनी परिणाम होते हैं |  एग्रीमेंट में वर्णित शर्तों की पालना नहीं करने पर जिस पक्षकार की गलती होती है उसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और न्यायालय के माध्यम से उचित मुआवजा प्राप्त किया जा सकता है साथ ही एग्रीमेंट को निरस्त भी कराया जा सकता है | इस संबंध में न्यायालय में उचित सबूत पेश करने आवश्यक है| जमीन संबंधी मामलों में कई कानूनी जटिलताएं और उलझने होती हैं इसलिए इस संबंध में कानूनी परामर्श के लिए अधिवक्ता की सहायता लिया जाना उचित प्रतीत होता है |बिना कानूनी जानकारी के संपत्ति संबंधी मामलों में निर्णय लेने से बड़ी आर्थिक और मानसिक अशांति से गुजरना पड़ सकता है |

पट्टा एग्रीमेंट(lease deed)

रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1908 की धारा 17 डी के मुताबिक पट्टा एग्रीमेंट(lease deed) का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है | इस एग्रीमेंट में पट्टेदार  का नाम पता  और  पट्टा  कितनी अवधि के लिए दिया जा रहा है और उसकी क्या शर्ते और मानदंड रखे गए हैं उसका विवरण देना पड़ता है ,सामान्य भाषा में कहे तो यह एक लंबी अवधि की किराएदारी है | संपत्ति का बाजार मूल्य और पट्टा  एग्रीमेंट की शर्तों का उल्लंघन करने पर होने वाले कानूनी परिणाम का विवरण भी इस एग्रीमेंट में लिखा जाता है | स्थिरता इसकी प्रमुख विशेषता है, जो लोग लंबी अवधि के लिए किराएदारी का उपयोग करना चाहते हैं उनके लिए इस व्यवस्था में किराएदारी में कोई वृद्धि नहीं होती है |

 

 

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Need Help ?