मानवाधिकार और पुलिस की भूमिका
(Human rights and role of police)
मानव अधिकारों का संरक्षण वर्तमान विश्व के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है संपूर्ण मानव जाति किसी न किसी रूप में शोषण, उत्पीड़न अत्याचार एवं आतंकवाद के जहर से पीड़ित है । मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए” मैग्नाकार्टा बिल ऑफ राइट्स ” जैसे अनेक प्रयास हुए किंतु क्या कारण है कि आज भी मानव अधिकार अधिकांश लोगों के लिए एक दूर की कौड़ी ,सुनहरे आश्वासनों का जाल और घाव पर देर से लगाया गया मरहम प्रतीत होता है। महिला उत्पीड़न की घटनाएं दिनोंदिन देश में बढ़ रही है ऐसे में पुलिस की भूमिका मानव अधिकारों के संरक्षण में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है । मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 द्वारा मानव अधिकारों से संबंधित अधिकांश समस्याओं का हल निकाला गया है। मानव अधिकारों में प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार सम्मिलित है । स्वतंत्रता, समानता एवं व्यक्तिगत गरिमा के साथ जीने का हर व्यक्ति को अधिकार है। एक मनुष्य होने के नाते आप के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार होना ही चाहिए और कानून द्वारा तय सिद्धांतों के दायरे में होना चाहिए इसमें मनमर्जी का कोई स्थान नहीं हो सकता है । केवल जीने का अधिकार ही नहीं सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार भी मानव अधिकारों के दायरे में शामिल हो चुका है। निशुल्क शिक्षा ,चिकित्सा ,फास्ट ट्रायल, पर्यावरण संरक्षण सभी मानव अधिकारों के दायरे में शामिल हो रहे हैं । आने वाले समय में मानव अधिकार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं एक वैश्विक परिदृश्य में मानव अधिकारों की महत्ता से हमारा देश भी अछूता नहीं है । हमने भी अपने संविधान में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए अनेक प्रयास एवं अनेकों उपबंध शामिल किए हैं। मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए मानव अधिकार संरक्षण कानून पारित किए गए हैं । भारत सरकार द्वारा इस संदर्भ में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 पारित किया गया है जो कि मानव अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी उपबंध है।कई ऐसे न्यायिक निर्णय है जिसमें मानव अधिकारों की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है एवं यह निर्णय एक मार्गदर्शक की भांति पुलिस, आम आदमी एवं समाज का मार्गदर्शन कर रहे हैं ।
मानव अधिकारों पर महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
Important judicial decisions on human rights
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय (Important judicial decisions )
आइए कुछ महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों की रोशनी में मानव अधिकारों पर प्रकाश डालते हैं ।
उन्नीकृष्णन बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश के मामले में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को निशुल्क शिक्षा का अधिकार दिया गया है
समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार बाबूलाल बनाम नई दिल्ली म्युनिसिपल कमेटी 1994 , स्टेट ऑफ हरियाणा बनाम राजपाल शर्मा 1997, तथा कृष्णा माचारुलू बनाम श्री वेंकटेश्वर हिंदू कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग 1998 के मामले में भी मानवाधिकार से सम्बन्धित सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संरक्षण संबंधित श्रीमती विशाखा बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान 1997 का मामला भी मानव अधिकारों के संरक्षण की दिशा में अभूतपूर्व रूप से हितकारी सिद्ध हुआ है।त्वरित विचारण अर्थात फास्ट ट्रायल का अधिकार कमिश्नर ऑफ पुलिस दिल्ली बनाम रजिस्ट्रार दिल्ली हाई कोर्ट 1997, पीने के लिए पानी प्राप्त करने का अधिकार फुटप्पा हॉन्नपा तलवार बनाम डिप्टी कमिश्नर धारवाड़ ए आई आर 1998 कर्नाटक,पर्यावरण संरक्षण का अधिकार एम सी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 1997, चिकित्सा सुविधा का अधिकार स्टेट ऑफ पंजाब बनाम महेंद्र सिंह चावला 1997 , प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार एम हसन बनाम गवर्नमेंट ऑफ़ आंध्र प्रदेश 1998 , यह तो कुछ उदाहरण है ऐसे और भी कई निर्णय है जिनमें मूल अधिकारों एवं मानव अधिकारों का संरक्षण किया गया है।
मानव अधिकार आयोग की शक्तियाँ
Powers of Human Rights Commission
मानव अधिकार आयोग किसी लोक सेवक द्वारा मानव अधिकारों का उल्लंघन किए जाने पर उसके विरुद्ध जांच कर सकता है ।जेलों में बंद कैदियों की जीवन की दशा का पता लगाने के लिए जेलों का निरीक्षण तथा मानव अधिकार विषयक सुरक्षा उपायों की समीक्षा, मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहन एवं स्वैच्छिक तथा गैर सरकारी संस्थाओं को आगे लाने की दिशा में मानव अधिकार आयोग कार्य करता है । आयोग किसी व्यक्ति को साक्ष्य के लिए सम्मन जारी करने की शक्ति रखता है।शपथ पर साक्ष्य ले सकता है। किसी भी सरकारी कार्यालय अथवा न्यायालय से कोई रिकॉर्ड अथवा अभिलेख मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए मंगवा सकता है । साक्ष्य के लिए कमीशन जारी कर सकता है। और किसी इन्वेस्टिगेशन एजेंसी से शिकायत की जांच भी कराने की शक्ति मानव अधिकार आयोग को प्राप्त है । कई बार पुलिस यह भूल जाती है कि जेल में बंद व्यक्ति भी समाज का एक अंग है उसके भी मनुष्य होने के नाते कुछ मूल अधिकार और मानव अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदान किया गया प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार कैदियों को भी प्राप्त है ।केवल मात्र गिरफ्तार होने और जेल में बंद कर दिए जाने से मानव अधिकार समाप्त या खत्म नहीं हो जाते।
मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:-
Decisions of the Supreme Court for human rights:-
वादिस्वरन बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह अभिमत प्रकट किया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार हैं चाहे वह कैदी या बंदी ही क्यों ना हो ।डीके बसु बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल 1997 के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अन्वेषण एवं जांच के दौरान पुलिस को क्रूरता अमानवीय एवं निम्न स्तर का व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है । ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति राज्य से कंपनसेशन अर्तार्थ प्रति कर पाने का हकदार है। प्रेमशंकर बनाम दिल्ली प्रशासन 1980 के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे हथकड़ी में रखना उचित नहीं है ।हथकड़ी का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब कैदी व्यक्ति के भागने का स्पष्ट और वर्तमान खतरा मौजूद हो ।किशोर सिंह बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि मानव प्रतिष्ठा हमारे संविधान का एक बहुमूल्य आदर्श है जिसकी आशंकाओं के आधार पर बलि नहीं दी जा सकती है ।
कई बार पुलिस का कार्य भी अत्यंत कठिन एवं जोखिम भरा होता है । पुलिस भी कई कष्ट सहन करती है किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि पुलिस को कुछ भी करने का अधिकार है । पुलिस को धैर्यवान एवं कानून का पालन करने वाला होना चाहिए । कानून एवं जनता दोनों की ही यही अपेक्षा रहती है । अपराधी से नहीं बल्कि अपराध से घृणा का भाव मन में होना चाहिए। मूल अधिकार और मानव अधिकार जेल की दीवारों से बाहर नहीं हो जाते क्योंकि जेल की दीवारें भी कानून के पत्थरों से बनी होती है।