गिरफ्तार व्यक्ति के क़ानूनी अधिकार और पुलिस की भूमिका :
Legal rights of the arrested person and role of police:
आम आदमी की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस ही कई बार आम नागरिकों के लिए खौफ की वजह बन जाती है। कई मामलों में पुलिस ने बेवजह लोगों की गिरफ्तारियां की या अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए मिस यूज ऑफ द प्रोसेस ऑफ लॉ किया है।बेशक कानून पुलिस को अपराधियों को गिरफ्तार करने की शक्ति देता है किंतु कानून द्वारा दी गई इस शक्ति पर कानून ने ही कुछ मर्यादाए अधिरोपित की है । पुलिस को गिरफ्तारी की जो शक्तियां कानून के द्वारा मिली हुई है वह अनियंत्रित, मनमानी और बिना वजह के उपयोग के आधार के साथ मिली हुई नहीं है । कानून ने गिरफ्तारी की प्रक्रिया , गिरफ्तारी के नियम , गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार और गिरफ्तारी कब हो सकेगी सभी के बारे में समय-समय पर आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं । भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के प्रक्रियात्मक प्रावधानों के साथ-साथ माननीय उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय भी समय-समय पर विभिन्न मामलों में पुलिस के लिए गिरफ्तारी के संबंध में मार्गदर्शक सिद्धांत जारी किए हैं जिनकी समुचित पालना सभी पुलिस अधिकारियों की कानूनी जिम्मेदारी है । यदि पुलिस अपना काम ठीक से नहीं करेगी तो निर्दोष व्यक्तियों के मानव अधिकारों एवं कानूनी अधिकारों का हनन होता रहेगा एवं हमारे उच्च संवैधानिक लक्ष्य एवं संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों की रक्षा नहीं हो पाएगी तथा कानून-व्यवस्था में लोगों के भरोसे को भी ठेस पहुंचेगी।
गिरफ्तार व्यक्ति के संवैधानिक अधिकार :
Constitutional rights of the arrested person:
पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति की मनमर्जी से गिरफ्तारी असंवैधानिक है तथा दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत भी गैरकानूनी है । मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किए जाने की दशा में पीड़ित पक्ष संविधान के आर्टिकल 32 के तहत अपनी फरियाद अर्थात प्रार्थना पत्र लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट की शरण में जा सकता है । सुप्रीम कोर्ट ने “डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य ” में एवं जोगिंदर कुमार बनाम स्टेट ऑफ यूपी के मामले में भी गिरफ्तारी के नियम और अधिकार के बारे में कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिन्हें अब दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में संशोधन के उपरांत शामिल कर लिया गया है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के मुताबिक किसी भी व्यक्ति को उसके प्राण और दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं । हमारे संविधान का अनुच्छेद 22 गिरफ्तार हुए और हिरासत में लिए गए लोगों को विशेष अधिकार प्रदान करता है । अनुच्छेद 22(2) गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने और मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और अधिक हिरासत में नहीं रखे जाने का अधिकार प्रदान करता है किंतु गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा का युक्त समय 24 घंटे की अवधि में शामिल नहीं है। आर्टिकल 22(4) से आर्टिकल 22 (6) तक में निवारक निरोध अर्थात प्रीवेंटिव डिटेंशन की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है ।आर्टिकल 20(2 )में किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक दंडित नहीं किया जाएगा यह प्रावधान वर्णित है । आर्टिकल 20 (3) में अभियुक्त को स्वयं के खिलाफ साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा ।
दंड प्रक्रिया संहिता में गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार :
Rights of the arrested person in CRPC
इसके अतिरिक्त दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 41 में उन दशाओं का वर्णन है जिसमें पुलिस वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकती है । धारा 41 दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस वारंट के बिना कब गिरफ्तार कर सकेगी इसके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है । धारा 41 के मुताबिक कोई पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारंट के बिना किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जो किसी अपराध से संबंधित रह चुका है या जिसके बारे में इस संबंध में उचित परिवाद किया जा चुका है या विश्वसनीय इतला प्राप्त हो चुकी है। या उचित संदेह विद्यमान है कि वह ऐसे संबंध रह चुका है। जो अपने कब्जे में विधि पूर्ण प्रति हेतु के बिना कोई हथियार रखता है।धारा 42 crpc जब कोई व्यक्ति पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में अपराध करता हैऔर अपना नाम तथा निवास बताने से इंकार करता है या झूठा नाम और निवास बताता है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है ताकि उसका नाम और निवास सही तरीके से अभी अभिनिश्चित किया जा सके। धारा 46 दंड प्रक्रिया संहिता गिरफ्तारी कैसे की जाएगी इसका वर्णन करती है । गिरफ्तारी करने में पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति जो गिरफ्तारी कर रहा है गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के शरीर को वस्तुतः छुएगा या प्रेरित करेगा जब तक कि उसने वचन या कर्म द्वारा अपने को अभिरक्षा में समर्पित न कर दिया हो । यदि ऐसा व्यक्ति अपने गिरफ्तार किए जाने के प्रयास का बलात प्रतिरोध करता है या गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो ऐसा पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति गिरफ्तारी करने के लिए आवश्यक संसाधनों के उपयोग में ला सकता है । धारा 47 उस स्थान की तलाशी जिसमें ऐसा व्यक्ति प्रविष्ट हुआ है जिसकी गिरफ्तारी की जानी है उसके बारे में कानूनी प्रावधानों का वर्णन करती हैं। धारा 49 के तहत गिरफ्तारी में अनावश्यक अवरोध नहीं किया जाएगा।धारा 50 के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों और जमानत के अधिकार की इत्तला दी जाएगी। धारा 51 के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों की तलाशी के दौरान अभिगृहीत या जब्त की गई वस्तु की रसीद दी जाएगी। और किसी स्त्री की तलाशी में शिष्टता का पूरा ध्यान रखते हुए अन्य स्त्री द्वारा ही तलाशी ली जाएगी । धारा 53 में पुलिस अधिकारी की प्रार्थना पर चिकित्सा व्यव सायी द्वारा निरुद्ध व्यक्ति की परीक्षा की जाती है। धारा 54 के अनुसार गिरफ्तार व्यक्ति की प्रार्थना पर मजिस्ट्रेट के आदेश से चिकित्सा व्यवसायी परीक्षा कर सकता है।धारा 57 के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक निरुद्ध नहीं किया जाएगा। धारा 58 के अनुसार गिरफ्तार व्यक्तियों की रिपोर्ट जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट को पुलिस द्वारा दी जाएगी । धारा 59 दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति का उनमोचन या डिस्चार्ज उसी के बंध पत्र पर या जमानत पत्र पर या मजिस्ट्रेट के विशेष आदेश के अधीन ही किया जाएगा अन्यथा नहीं । दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 169 के अनुसार साक्ष्य अपर्याप्त हो तब पुलिस अधिकारी अभियुक्त व्यक्ति को बंध पत्र निष्पादित करने पर छोड़ देगा । पुलिस के बारे में अधिकांशतः यह देखने में आता है कि मानव अधिकारों के हनन के अधिकांश परिवाद अवैध गिरफ्तारी और अवैध बंदी करण के होते हैं । कई बार पुलिस का जनता से कानूनन व्यवहार नहीं होने के कारण पुलिस को अनुसंधान में दिक्कत आती है । साथ ही पीड़ित व्यक्ति भी न्याय से वंचित रह जाता है । पुलिस का पहला कर्तव्य है कि बिना किसी दबाव के सत्य का अन्वेषण करें तथा दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध जांच एवं अभियोजन/ मुकदमा चलाने की कार्रवाई करें इससे वास्तविक दोषी भी सलाखों के पीछे होंगे और निर्दोष नागरिकों को पूर्ण न्याय प्राप्ति में सहायता मिलेगी । गिरफ्तारी की कानूनन शक्ति होने मात्र से ही गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए । उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के बाद यह स्थापित विधि है कि गिरफ्तारी का युक्तियुक्त होना चाहिए । मनमर्जी से गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए ।
गिरफ्तारी पर सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय :
Important decisions of the Supreme Court on arrest:
डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के प्रकरण में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी कुछ दिशा निर्देश निम्न प्रकार है – गिरफ्तारियां / पूछताछ करते समय पुलिस अधिकारी नाम या पदनाम की पट्टी लगाएं । गिरफ्तारी के विवरण पर उसके परिवार या क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्ति के हस्ताक्षर कराया जाए । गिरफ्तार व्यक्ति के भी हस्ताक्षर हो । व्यक्ति की गिरफ्तारी एवं उसे रखे जाने के स्थान की परिचित को सूचना दी जाए । गिरफ्तारी की केस डायरी में प्रविष्टि आवश्यक रूप से होनी चाहिए ।गिरफ्तारी से पूर्व व्यक्ति की चोटों की जांच होनी चाहिए ।माननीय उच्चतम न्यायालय ने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए समय-समय पर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए ।जैसे जोगिंदर कुमार का केस 1994 प्रेमशंकर बनाम दिल्ली प्रशासन का केस 1983 , सिटीजन फॉर डेमोक्रेसी बनाम आसाम राज्य आदि के मामले में गिरफ्तारी के संबंध में कई सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं । गिरफ्तार किया हुआ व्यक्ति मजिस्ट्रेट के सामने लाने पर या पेश किए जाने पर पुलिस द्वारा रिमांड लेने के वक्त कह सकता है कि वह कब से जेल में बंद रहा है एवं पुलिस अधिकारियों एवं पुलिस कर्मचारियों ने अमानवीय बर्ताव किया है तो उसके बारे में भी न्यायालय को अवगत करा सकता है । इसके अतिरिक्त अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ गिरफ्तार व्यक्ति का रिश्तेदार संबंधित उच्च न्यायालय में रिट याचिका हैबियस कॉर्पस फाइल कर सकता है।निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि पुलिस एवं आम नागरिकों को भी कानून की सही जानकारी होना जरूरी है ताकि किसी के भी कानूनी अधिकारों का हनन नहीं हो एवं कानून के हाथ मजबूत हो ।पुलिसकर्मी मानवीय संवेदनशीलता के साथ सही कानूनी प्रक्रिया अपनाते है तो मानव अधिकारों का हनन काफी हद तक रोका जा सकता है साथ ही नागरिक भी पुलिस के प्रति कानूनन सहयोग की भावना रखें ।