Legal Defense of False Fir: Understanding Methods and Implications( Hindi)

झूठी एफ. आई.  आर (FIR ) और गिरफ्तारी से कैसे बचाव करें ?

How to protect against  false FIR and arrest?How to protect against  false FIR and arrest?

कुछ लोग  बेवजह  दुश्मनी निकालने के लिए झूठी एफ आई आर दर्ज करवा देते हैं ऐसे में जिनके खिलाफ झूठी  एफ आई आर दर्ज हो जाती हैं वो  व्यक्ति कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग के शिकार हो जाते हैं|  यह कानून की लेखनी का एक अंधेरा पक्ष है |  यदि  जिन व्यक्तियों के विरुद्ध झूठी FIR दर्ज हो जाती है अगर कानून उन्हें समुचित उपचार उपलब्ध ना करवाता तो ऐसे व्यक्तियों के संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का  तो हनन होता ही  है साथ ही कई तरह की परेशानियों से गुजर कर ऐसा व्यक्ति आर्थिक रूप से भी बर्बादी की कगार पर पहुंच सकता है  |  ऐसे में दंडात्मक कानून में कुछ ऐसे प्रावधान है जो निर्दोष व्यक्तियों को सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं|दरअसल कानून बनाते समय हमारे महान विधि निर्माताओं का आशय सदैव रहा है कि दोषी व्यक्ति को सजा देते समय निर्दोष व्यक्ति कानून के दुरुपयोग का शिकार ना हो जाए |  कानून में झूठी FIR  से बचने एवं निर्दोष व्यक्ति के सुरक्षा कवच के तौर पर ऐसे प्रावधान का उपबंध है जिससे झूठी FIR  निरस्त हो सकती हैं |

झूठी FIR निरस्त करवाने के लिए कहाँ आवेदन करें ?

Where to apply to get a false FIR quash?

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के तहत पीड़ित व्यक्ति जिसके खिलाफ झूठी FIR  लिखी जा चुकी है या दर्ज हो चुकी है वह FIR  को माननीय उच्च न्यायालय में अपने अधिवक्ता की मदद से  चुनौती दे सकता है एवं माननीय न्यायालय से निष्पक्ष न्याय की मांग की जा सकती है|अपने बचाव में संबंधित तथ्यों का ब्यौरा देते हुए दर्ज की गई FIR को प्रश्नगत किया जा सकता है | पीड़ित व्यक्ति की तरफ से अपनी बेगुनाही के सबूत के तौर पर ऑडियो वीडियो अर्थात कोई इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट अथवा अन्य दस्तावेजी सबूत दाखिल किए जा सकते हैं तथा सही तथ्यात्मक विवरण कानूनी दलीलो  एवं नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर कोई भी पीड़ित पक्षकार माननीय उच्च न्यायालय से स्वयं के लिए न्याय की उम्मीद कर सकता है |

माननीय उच्च न्यायालय को सभी तरह के अधिकार धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता में है |  माननीय उच्च न्यायालय मामले के तथ्यों एवं कानूनी बिंदुओं तथा साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत अनुसंधान अधिकारी को आवश्यक दिशा निर्देश जारी कर सकता है|  FIR   निरस्त की जा सकती है, गिरफ्तारी पर रोक लगाई जा सकती है इत्यादि सभी कानूनी शक्तियां दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 में माननीय उच्च न्यायालय में अंतर्निहित है|

क्या झूठी FIR दायर होने की वजह से पुलिस गिरफ्तार कर सकती है ?

Can the police arrest because a false FIR is filed?Can the police arrest because a false FIR is filed

 

जब तक धारा 482 CRPC में मामले का निस्तारण माननीय उच्च न्यायालय द्वारा नहीं किया जाता तब तक पुलिस मनमर्जी से आरोपी  व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती है | माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों के अधीन ही पुलिस कार्रवाई मामले में आगे जारी रखी जा सकती है |

गिरफ़्तारी पर रोक संबंधी CRPC की धारा 482  क्या हैं ?

What is Section 482 of CRPC related to arrest?

इस संहिता की कोई बात उच्च न्यायालय को ऐसे आदेश देने की अंतर्निहित शक्ति को सीमित या प्रभावित करने वाली नहीं समझी जाएगी जिसे  इस संहिता के अधीन किसी आदेश को प्रभावी  करने के लिए या किसी न्यायालय की कार्रवाई का दुरुपयोग निवारित  करने के लिए या किसी अन्य प्रकार से न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो |

सर्वोच्च न्यायालय के  फैसलों की रोशनी में धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता की व्याख्या :-

Explanation of Section 482 of the Code of Criminal Procedure ( decisions of the Supreme Court) :Explanation of Section 482 of the Code of Criminal Procedure ( decisions of the Supreme Court)

आनंद कुमार मेहता बनाम दिल्ली सरकार के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि उच्च न्यायालय धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर याचिका जिसमें FIR . को रद्द करने की मांग की गई है उसके ऊपर विचार कर सकता है भले ही उस याचिका के लंबित रहते हुए चार्ज शीट दायर कर दी गई हो।

जितेंद्र कुमार उर्फ जितेंद्र सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले  में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के लिए कारण बताना अनिवार्य है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दायर याचिका को अनुमति क्यों दी जा रही है या  अस्वीकार क्यों किया जा रहा है।

एक अन्य मामले प्रोफेसर आरके विजय सारथी बनाम सुधा सीताराम के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि उच्च न्यायालय को यह जांच करनी चाहिए कि क्या परिवार एक सिविल विवाद है जिसे आपराधिक मामले की शक्ल दी जा रही है उच्च न्यायालय को इसकी तह में जाना चाहिए।

इस प्रकार धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता एक ऐसा सुरक्षा कवच है जिसमें निर्दोष व्यक्तियों को कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग से माननीय उच्च न्यायालय के माध्यम से कानूनन सुरक्षा प्रदान की गई है |

 

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