कानून में CrPC क्या है ? एक संक्षिप्त अवलोकन
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 जो कि भारत की संसद द्वारा पारित की गई थी आपराधिक न्याय प्रशासन की प्रक्रिया को त्वरित गति प्रदान करने तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष दाण्डिक प्रक्रिया को अपनाने के उद्देश्य की दंड प्रक्रिया संहिता 1973 को अधिनियम के रूप में लाया गया था | इस अधिनियम में अपराधों के संज्ञान, अभियुक्त की गिरफ्तारी, जमानत के प्रार्थना पत्रों की सुनवाई,दाण्डिक मामलों में न्यायालय द्वारा साक्ष्य को ग्रहण करने की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है इसके साथ ही अपराधियों की दोष सिद्धि और निर्दोषिता की विधिशास्त्रीय उप धारणाओं और सिद्धांतों का न्यायालय के माध्यम से व्यावहारिक प्रयोग संभव किया गया है जब तक दोष सिद्ध नहीं हो जाता भारतीय दाण्डिक विधि में अपराधी के निर्दोषिता की उपाधारणा की जाती है | अपराधों के श्रेणीवार बर्गीकरण के साथ ही उनको जमानतीय और अजमानतीय अर्तार्थ बेलेबल ओर नॉन बेलेबल ऑफेंस में बांटा गया है | सीआरपीसी में कुछ कम गंभीर अपराधों के हिसाब से उनका संक्षिप्त विचारण भी प्रावधानित किया है ,अपराधों को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और जिला न्यायाधीश द्वारा विचारणीय बनाया है या ट्राइल योग्य बनाया गया है और उन्हें सम्मन मामलों तथा वारंट मामला में विभाजित किया गया है | भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में कुल 484 धाराएं हैं जिनको 37 चैप्टर में बांटा गया है इस अधिनियम को दो अनुसूचियों तथा 56 फार्म के साथ बनाया गया है इस प्रकार से यह एक वृहद दंड प्रक्रिया संहिता बन गई है जिसमें प्रथम सूचना रिपोर्ट से लेकर गिरफ्तारी और अंतिम निर्णय तक की पूरी प्रक्रिया दी गई है | इसमें पुलिस की गिरफ्तारी की शक्तियां,न्यायालय का पुलिस पर नियंत्रण, न्यायालय के अधिकार और शक्तियां, अभियुक्त के अधिकार तथा त्वरित और पारदर्शी न्यायिक प्रणाली को कानूनी रूप दिया गया है | किसी भी अपराध का विचारण न्यायालय में कैसे होगा इस बारे में सीआरपीसी या दंड प्रक्रिया संहिता प्रावधान करती है | किसी अधिनियम में किसी विशिष्ट प्रक्रिया के अपवादिक मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों में सीआरपीसी के द्वारा ही अपराधियों का विचारण किया जाता है |
CrPC और IPC मैं प्रमुख अंतर क्या है ?
आईपीसी को भारतीय दंड संहिता 1860 कहा जाता है जबकि सीआरपीसी को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 कहा जाता है जबकि संक्षेप में दंड संहिता के लिए आईपीसी तथा दंड प्रक्रिया संहिता के लिए सीआरपीसी के नाम का इस्तेमाल या सम्बोधन किया जाता है जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है आईपीसी या दंड संहिता में किन कार्यों को अपराध माना गया है तथा उनके बारे में क्या सजा या दंड की व्यवस्था है उसको धाराओं के हिसाब से विवरण सहित दिया गया है यदि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप है तो उस व्यक्ति के विरुद्ध आईपीसी की संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज होगा और सीआरपीसी के अंतर्गत उस व्यक्ति के अपराध का विचारण होगा अथवा ट्रायल होगी इसको कुछ इस तरह से भी समझा जा सकता है कि आईपीसी मूल अपराध और उनके बारे में सजा का प्रावधान करती है जबकि सीआरपीसी उन्ही अपराधों के बारे में प्रक्रिया विहित करती है कि अपराधियों का विचारण किस तरह से किया जाएगा | पुलिस उनको किस तरह से गिरफ्तार करेगी ? गिरफ्तार व्यक्तियों के क्या अधिकार होंगे ? वह अपना बचाव किस तरह से करेंगे ? न्यायालय मामलों का विचारण कैसे करेंगे ? विचारण करते समय क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी ? इन सभी बिन्दूगत प्रश्नों का विवरण सीआरपीसी में धारा अनुसार कानूनी भाषा में दिया गया है | आईपीसी के अलावा अन्य अधिनियम जिनमें किसी अपराध के लिए सजा तय की गई है सीआरपीसी में विचारण होगा |
Crpc का (फुल फॉर्म क्या है ) सीआरपीसी का पूरा नाम क्या है ?
सीआरपीसी का पूरा नाम दंड प्रक्रिया संहिता1973 है जिसे अंग्रेजी भाषा में “THE CODE OF CRIMINAL PROCEDURE, 1973” कहा जाता है, जो कि आपराधिक मामलों के ट्रायल और विचारण के लिए काम में लाई जाती है भारत में दाण्डिक प्रक्रिया संबंधी यह एक प्रमुख विधि है |
सीआरपीसी (Crpc) का संस्थापक अथवा पिता किसे माना जाता है ?
दंड प्रक्रिया संहिता जो कि वर्तमान में भारत में प्रचलन में है सर्वप्रथम सन 1861 में ब्रिटिश काल में प्रथम बार प्रकाशित हुई तत्पश्चात उसमें संशोधन हुए और वर्तमान में दंड प्रक्रिया संहिता1973 प्रचलन में है | दंड प्रक्रिया संहिता सन 1833 के ब्रिटिश चार्टर के ऊपर आधारित है | विधि शास्त्री श्री थॉमस बैबिंगटन मैकाले को दंड प्रक्रिया संहिता का पिता कहा जाता है |
क्या सीआरपीसी एक दाण्डिक कानून है ?
दंड प्रक्रिया संहिता को दाण्डिक कानून की बजाय दाण्डिक प्रक्रिया कानून कहना ज्यादा सही प्रतीत होता है क्योंकि दाण्डिक कानून में जिन अपराधों के लिए दंड की व्यवस्था की गई है उनको दंड देने की प्रक्रिया का विवरण ही सीआरपीसी में दिया गया है इस वजह से यह दंड विधि का एक प्रक्रिया कानून है | दाण्डिक न्यायालय के वर्ग को गठित करने, पुलिस गिरफ्तारी पर अनुसंधान को नियमित करने, दाण्डिक न्यायालय की प्रक्रिया सुनिश्चित करने हेतु यह अधिनियम लाया गया था अतः यह दंड विधि की प्रक्रिया श्रेणी का कानून है |
(Crpc)सीआरपीसी की रचना सर्वप्रथम किसने की ?
दंड प्रक्रिया संहिता सन 1861 सर्वप्रथम अस्तित्व में आई थी और इसकी रचना लॉर्ड मैकाले ने की थी |जिनका पूरा नाम श्री थॉमस बैबिंगटन मैकाले था |
सीआरपीसी के प्रमुख कार्य क्या-क्या है ? सीआरपीसी क्या काम आती है ?
दंड प्रक्रिया संहिता अर्थात सीआरपीसी का प्रमुखकार्य पुलिस द्वारा अपराधियों की गिरफ्तारी, न्यायालय द्वारा आरोप तय किया जाना, स्वतंत्र और निष्पक्ष विचारण और दोषी पाए जाने पर अपराधियों के लिए सजा की व्यवस्था तथा निर्दोष होने पर डिस्चार्ज करने या या आरोप मुक्त करने की व्यवस्था कानून के माध्यम से की गई है | दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार अलग-अलग अपराधों के लिए अपराधों की गंभीरता के हिसाब से न्यायालय के अलग-अलग वर्ग गठित किए गए हैं |
सीआरपीसी में कुल कितनी कानूनी धाराएं हैं ?
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में कुल 484 धाराएं हैं जिनको 37 चैप्टर में बांटा गया है इस अधिनियम को दो अनुसूचियों तथा 56 फार्म के साथ बनाया गया है इस प्रकार से यह एक वृहद् दंड प्रक्रिया संहिता का रूप लेती है जिसे आपराधिक न्याय प्रशासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया है |
सीआरपीसी कब लिखी गई ?
दंड प्रक्रिया संहिता सर्वप्रथम सन 1861 में लिखी गई जिसमें कालांतर में कई संशोधन हुए वर्तमान में यही संशोधित दंड प्रक्रिया संहिता अस्तित्व में है जिसे दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के नाम से जाना जाता है |
क्या सीआरपीसी संविधान से अलग है ? क्या सीआरपीसी संविधान का हिस्सा है ?
दंड प्रक्रिया संहिता या सीआरपीसी संविधान का भाग नहीं है , सीआरपीसी का कोई भाग या धारा यदि नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है तो यह न्यायिक समीक्षा का विषय है और माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विधि का प्रश्न होने के कारण और संवैधानिक निर्वचन का प्रश्न होने के कारण प्रश्नगत किया जा सकता है, सर्वोच्च न्यायालय संवैधानिक व्याख्या की अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी भी कानून को संविधान के विपरीत होने पर उस सीमा तक शून्य घोषित कर सकती है जिस सीमा तक उस कानून का भाग संविधान के विपरीत है | संविधान देश की सर्वोच्च विधि होता है अतः सीआरपीसी को भी संविधान के हिसाब से ही बनाया जा सकता है |
सीआरपीसी के तहत प्रदत्त शक्तियां क्या-क्या है ?
पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा 41 में बिना वारंट गिरफ्तार करने की शक्ति, अन्य धाराओं में तलाशी और जब्ती की शक्तियां भी दी गई है ,संज्ञेय अपराधों में गिरफ्तारी की शक्तियां,नाम और निवास अभिनिश्चित करने के लिए गिरफ्तारी की शक्ति, पीछा करने और पकड़ लेने की शक्तियां , दोषी पाए जाने पर अपराधियों को दंड देने की शक्तियां , स्वतंत्र और निष्पक्ष विचारण की शक्तियां, सामान्य जुर्माने से लेकर मृत्यु दंड तक की सजा देने की सक्षम न्यायालय की शक्तियां , यह सभी दंड प्रक्रिया संहिता में वर्णित पुलिस और न्यायालय की शक्तियां है इनको यह शक्तियां इसलिए प्रदान की गई है ताकि कानून और व्यवस्था की स्थिति कायम रहे, लोगों का न्याय में विश्वास प्रबल रहे तथा निर्दोष व्यक्ति को सुरक्षा प्राप्त हो |
सीआरपीसी का उपयोग कौन कर सकता है ? सीआरपीसी किसके उपयोग के लिए बनाई गई है ?
दंड प्रक्रिया संहिता में विभिन्न प्रकार के प्रावधान मौजूद हैं जिनमें पुलिस गिरफ्तारी अनुसंधान,चार्ज शीट दाखिल करना,आरोप सुनाया जाना , न्यायालय द्वारा अभियुक्तों का विचारण करना और दोषी पाए जाने पर सजा देना , अभियुक्त व्यक्ति द्वारा स्वयं के बचाव में साक्ष्य प्रस्तुत करना यह सभी कार्य अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा किए जाते हैं इसलिए सीआरपीसी पुलिस, न्यायालय और आम आदमी के लिए उपयोगी है और आपराधिक न्याय प्रशासन का एक महत्वपूर्ण भाग है | न्यायालय, पुलिस और आम नागरिक सीआरपीसी का उपयोग कर सकते है प्रत्येक प्रकार की परिस्थिति के लिए अलग अलग धारा में विवरण दिया गया है | उदहारण स्वरुप , पुलिस अनुसंधान और गिरफ्तार कर सकती है | न्यायालय दोषी पाए जाने पर सजा दे सकता है और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष विचारण कर सकता है | आम नागरिक अपराधों की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे सकता है | कार्यवाही नहीं होने पर न्यायालय की शरण ले सकता है, अभियुक्त स्वयं के बचाव में साक्ष्य पेश कर सकता है, इस प्रकार से यह सभी प्रावधान सभी के लिए उपयोगी है |